राष्ट्रीय पुस्तकालय (कोलकाता) :- आज मैं आप लोगों के साथ जो जानकारी साझा करने वाला हूँ वो एक पुस्तकालय की है। पुस्तकालय = पुस्तक+आलय, अब यहाँ पुस्तक यानि किताब और आलय मतलब घर कुल मिलकर बोलें तो पुस्तकालय मतलब पुस्तक का घर। पुस्तकालय मे बहुत सारी किताबें होती है जो पाठकों को जो पढ़ना होता है वो यहाँ आकार शांति वातावरण में पढ़ते हैं, लेकिन आपको यह पता होनी चाहिए की भारत में एक पुस्तकालय ऐसा भी है जिसे प्रेतवाधित माना जाता है….
प्रस्तावना
भारत जैसे विशाल देश में जहां संस्कृति, इतिहास और रहस्य एक-दूसरे में घुल-मिल जाते हैं, वहाँ कोलकाता स्थित राष्ट्रीय पुस्तकालय (National Library of India) न केवल भारत का सबसे बड़ा पुस्तकालय है, बल्कि एक ऐसा स्थान भी माना जाता है जहाँ अलौकिक घटनाएं भी घटती हैं। क्या यह सिर्फ एक पुरानी इमारत है या इसके अंदर कोई ऐसा रहस्य छिपा है जिसे आज तक कोई सुलझा नहीं पाया?
राष्ट्रीय पुस्तकालय – एक ऐतिहासिक परिचय
राष्ट्रीय पुस्तकालय भारत का सबसे बड़ा और सबसे समृद्ध पुस्तक भंडार है। यह कोलकाता के बेलवेडियर एस्टेट में स्थित है। इस पुस्तकालय की स्थापना ब्रिटिश काल में हुई थी और तब इसका नाम था – “इम्पीरियल लाइब्रेरी”।
- स्थापना वर्ष: 1836
- राष्ट्रीय पुस्तकालय के रूप में पुनः उद्घाटन: 1948
- स्थान: बेलवेडियर रोड, अलीपुर, कोलकाता
- कुल संग्रह: 2.2 मिलियन से अधिक किताबें, पांडुलिपियाँ, अखबार, पत्रिकाएं आदि
लेकिन जितना यह पुस्तकालय अपनी किताबों के लिए प्रसिद्ध है, उतना ही यह भूतिया घटनाओं के लिए भी बदनाम है।
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कुछ अनसुलझे सवाल: क्या सच में यह पुस्तकालय प्रेतवाधित है?
सदियों पुरानी इमारतें हमेशा अपने साथ कई कहानियाँ समेटे होती हैं। लेकिन जब बात राष्ट्रीय पुस्तकालय की आती है, तो मामला सिर्फ दीवारों के पुराने होने तक सीमित नहीं रहता। यहाँ काम करने वाले सुरक्षाकर्मियों, कर्मचारियों और शोधार्थियों द्वारा कई रहस्यमयी घटनाओं की पुष्टि की गई है।
रात के समय सुनाई देने वाली आवाजें
कई कर्मचारियों का दावा है कि रात में जब पुस्तकालय बंद होता है, तो अंदर से किसी के चलने, किताबें पलटने या फुसफुसाने की आवाजें आती हैं, जबकि अंदर कोई नहीं होता।
एक ब्रिटिश महिला की आत्मा?
कहते हैं कि जब यह पुस्तकालय बेलवेडियर हाउस हुआ करता था, तब यह ब्रिटिश गवर्नर जनरल की रिहाइश थी। मान्यता है कि उस समय की एक अंग्रेज महिला की आत्मा अब भी इस इमारत में भटकती है और कुछ खोज रही है।
पुरातत्व विभाग की खुदाई
2000 के दशक की शुरुआत में जब इस इमारत के एक हिस्से की मरम्मत हो रही थी, तो भारतीय पुरातत्व विभाग (ASI) को इसके नीचे एक गुप्त तहखाना मिला। इस तहखाने में कई पुराने अवशेष, रहस्यमय मार्ग और बंद दरवाज़े मिले जिनका अब तक पूरा अध्ययन नहीं हो सका।
घटनाएं जो लोगों को सोचने पर मजबूर करती हैं
घटना 1: शोधकर्ता की चीख
एक शोधकर्ता, जो ब्रिटिश राजकाल के दस्तावेजों पर काम कर रहा था, ने बताया कि उसे किसी ने पीछे से गर्दन पर हाथ रखा, लेकिन जब उसने पलटकर देखा, वहां कोई नहीं था। वो घबरा गया और उस दिन के बाद फिर कभी अकेले पुस्तकालय नहीं गया।
घटना 2: सुरक्षाकर्मी की बेहोशी
रात की ड्यूटी पर तैनात एक गार्ड को पुस्तकालय के एक कोने से रोने की आवाजें आईं। जब वह जांच के लिए गया तो उसे कुछ दिखाई नहीं दिया, लेकिन अचानक तेज़ ठंडी हवा चलने लगी और वो बेहोश होकर गिर पड़ा। सुबह जब उसे होश आया, तो उसने अपनी ड्यूटी छोड़ दी।
भवन का वास्तु – रहस्य को जन्म देने वाली बनावट?
राष्ट्रीय पुस्तकालय की इमारत अंग्रेज़ी वास्तुकला का बेहतरीन उदाहरण है, जिसमें लंबे गलियारे, ऊँची छतें और गुप्त सीढ़ियाँ हैं। कई स्थानों पर प्राकृतिक रोशनी की अनुपस्थिति और अत्यधिक सन्नाटा भी इस इमारत को डरावना बना देता है।
विशेषकर जब आप किसी पुराने दस्तावेज़ सेक्शन में अकेले हों, और सिर्फ दीवार घड़ी की टिक-टिक और पन्नों के पलटने की आवाज सुनाई दे – तो डरना स्वाभाविक है।
कैमरों में कैद हुई परछाइयाँ
कुछ डॉक्यूमेंट्री फिल्म निर्माताओं और यूट्यूब व्लॉगर्स ने जब इस इमारत का रात में विडियो बनाया, तो उनके कैमरों में कुछ अस्पष्ट परछाइयाँ और धुंधली आकृतियाँ रिकॉर्ड हुईं। हालांकि वैज्ञानिक तौर पर इन्हें प्रकाश प्रभाव या कैमरा फोकस की गलती बताया गया, लेकिन जो लोग वहां मौजूद थे, उनके अनुभव अलग ही कहानी बयां करते हैं।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
भूत-प्रेत पर विश्वास न करने वाले लोग इन घटनाओं को मानव मन का भ्रम, पुरानी इमारत की गूँज, या कम रोशनी के कारण उत्पन्न भ्रम मानते हैं। उनके अनुसार:
- पुराने भवनों में गूँज ज्यादा होती है
- तेज़ हवा से खिड़कियों का खुलना-बंद होना आम है
- मन पहले से डरा हुआ हो तो सामान्य आवाजें भी असाधारण लगती हैं
लेकिन प्रश्न ये उठता है – क्या हर बार ये तर्क सच साबित होते हैं?
पुस्तक प्रेमियों के लिए आकर्षण, लेकिन सावधानी जरूरी?
हां, ये पुस्तकालय आज भी लाखों शोधार्थियों, छात्रों और पाठकों के लिए एक स्वर्ग है। लेकिन जो लोग यहां लंबे समय तक काम करते हैं, वे खुद कहते हैं – “यहाँ कुछ है जिसे शब्दों में नहीं समझाया जा सकता।”
यदि आप एक साहित्य प्रेमी हैं, और इतिहास की परतों को खुद पढ़ना चाहते हैं, तो एक बार राष्ट्रीय पुस्तकालय जरूर जाएं। लेकिन अगर आप डरपोक हैं, तो शाम 6 बजे से पहले बाहर निकल जाना ही बेहतर होगा।
क्या यह सब महज एक कल्पना है?
यह कह पाना मुश्किल है, क्योकि सभी के अपने अपने विचार धारा इस पुस्तकालय के प्रति अलग अलग हैं। कुछ लोग मानते हैं कि “राष्ट्रीय पुस्तकालय” जैसी जगह को भूतिया बताना सिर्फ लोगों का ध्यान आकर्षित करने का तरीका है। जबकि अन्य लोगों को लगता है कि यहाँ कुछ तो अदृश्य ताकत है, जिसे लोगों ने अलग अलग समय पर अनुभव भी किया है।
आप क्या सोचते हैं?
निष्कर्ष (निस्संदेह महत्वपूर्ण)
राष्ट्रीय पुस्तकालय, कोलकाता केवल किताबों का भंडार नहीं है, बल्कि यह भारत के इतिहास, संस्कृति और शायद परालौकिक रहस्यों का भी जीवित उदाहरण है। क्या यह सिर्फ पुरानी दीवारों की खामोशी है या आत्माओं की फुसफुसाहट? यह तय करना आपके अनुभव पर निर्भर करता है।
अगर आप इतिहास, रहस्य और पुस्तक प्रेमी हैं, तो यह स्थान आपके लिए आदर्श है।
अस्वीकरण:
इस लेख में दी गई जानकारी विभिन्न स्रोतों, स्थानीय कथाओं और लोगों के अनुभवों पर आधारित है। bhutkikahani.com इन भुतिया घटनाओं या दावों की सत्यता की पुष्टि नहीं करता है। इस लेख का उद्देश्य केवल मनोरंजन और सामान्य जानकारी प्रदान करना है।