प्रस्तावना
भुतिया जंगल:- भारत के हृदयस्थल कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ में अनेकों रहस्यमयी और रहस्यपूर्ण स्थान छिपे हुए हैं, जिनके पीछे डरावनी कहानियाँ और दिल दहला देने वाली सच्चाईयाँ जुड़ी हुई हैं। इन्हीं में से एक स्थान है एक प्राचीन गांव के समीप स्थित “भुतिया जंगल”, जिसकी दहशत आज भी लोगों के दिलों में समाई हुई है। कहा जाता है कि यह जंगल इतना घना है कि सुबह की सूर्य की किरणें भी इसकी धरती तक नहीं पहुंच पातीं। लेकिन असली डर तो उन आत्माओं का है जो इस जंगल में भटक रही हैं — बदला लेने लेने के लिए। इस कहानी की शुरुआत होती है आज से करीब 150 साल पहले…
गांव का जीवन और जंगल की अहमियत
छत्तीसगढ़ के एक छोटे से गांव “कुटेसरा” में लोग अपने साधारण जीवन में मग्न थे। गांव की जनसंख्या ज्यादा नहीं थी, लेकिन वहां के लोगों का जीवन पूरी तरह से उस जंगल पर निर्भर था। गांव की लगभग 60% जनसंख्या खेती, लकड़ी और जड़ी-बूटियों के लिए उस जंगल पर निर्भर थी। यह जंगल गांव से कुछ ही दूरी पर था, लेकिन इतना घना था कि उसमें एक बार प्रवेश करने पर रास्ता भूल जाना आम बात थी।
लोगों का कहना था कि यह जंगल ईश्वर द्वारा दिया गया वरदान है — जीवन देने वाला स्रोत। लेकिन यह वरदान कब शाप में बदल गया, किसी को पता नहीं चला।
डायन का आरोप और सामाजिक अत्याचार
गांव में एक महिला रहती थी – उसका नाम था “गौरा बाई”। गौरा बाई अकेली रहती थी, उसकी कोई संतान नहीं थी और उसका पति वर्षों पहले एक बीमारी के चलते मर गया था। गांव में जब भी कोई बच्चा बीमार होता, फसलें खराब होतीं या मवेशी मर जाते, तो लोग गौरा बाई को दोष देने लगे। धीरे-धीरे गाँव वालों ने गौरा बाई को डायन घोषित कर दिया, गौरा बाई से न कोई गाँव वाले टोकते और न ही उनको गाँव मे किसी प्रकार के आयोजन मे निमंत्रण देते थे। यह बात यहीं नहीं रुकी एक दिन
गांव के कुछ प्रभावशाली लोगों ने मिलकर यह तय कर लिया कि गौरा बाई ही गांव की समस्याओं की जड़ है। और उसी रात, जब पूरा गांव सो रहा था, तब गांव के कुछ पुरुषों ने गौरा बाई को उसके घर से जबरदस्ती उठाया, और उस जंगल के भीतर ले जाकर उसे बेरहमी से मार डाला। फिर उसकी लाश को बिना किसी धार्मिक क्रिया के जंगल में गाड़ दिया गया। लोगों को लगा अब गांव शांत हो जाएगा… लेकिन यह उनकी सबसे बड़ी भूल थी।
डर की शुरुआत
गौरा बाई की मौत के कुछ ही हफ्तों बाद गांव में अजीब घटनाएं होने लगीं। सबसे पहले वह पुरुष मरा, जिसने सबसे पहले गौरा बाई को “डायन” कहा था। उसकी लाश जंगल के पास मिली, आंखें फटी हुईं, शरीर नीला पड़ा हुआ, जैसे उसने मरने से पहले किसी भयंकर चीज़ को देखा हो।
इसके बाद एक-एक करके वे सभी लोग मारे गए जो उस रात जंगल में गौरा बाई को मारने गए थे। किसी की गर्दन टूटी मिली, किसी का शरीर पेड़ से लटका, और कुछ लोगों की लाशें कभी मिली ही नहीं।
जंगल में छिपे साए
अब गांव के लोग जंगल में जाने से डरने लगे थे। दिन के समय भी कोई उस जंगल की ओर नहीं जाता था। कहते हैं वहां एक महिला की चीखें गूंजती थीं, जो कभी मदद मांगती थी तो कभी बदला लेने की धमकी देती थी। कई लोग यह भी कहते हैं कि उन्होंने गौरा बाई की आत्मा को सफेद साड़ी में, जंगल के अंदर चलते देखा था।
बच्चों को सख्त हिदायत थी कि वे जंगल की ओर न जाएं। मगर एक बार एक लड़का, “मनीष”, जो बहुत जिज्ञासु स्वभाव का था, वो जंगल चला गया वो भी बिना किसी को बताए, जब शाम होने को आई और मनीष अब तक घर नहीं लौटा था तब उसके घर वाले को चिंता खाने लगी, पूरा रात बीत गया परंतु मनीष नहीं आया। उसकी मां का रो-रोकर बुरा हाल था। कुछ दिनों बाद मनीष की लाश उसी जगह मिली जहां गौरा बाई को दफ्नाया गया था।
भुतिया जंगल के कारण गाँव की बदनामी और खाली होता इलाका
जैसे-जैसे समय बीतता गया, गांव में अजीब घटनाएं बढ़ती गईं। रात में पेड़ों से अजीब आवाजें आती थीं। लोग कहते थे कि उन्होंने अपनी झोपड़ी के पास किसी को चलते हुए देखा, खेतों की फसलें अपने आप जल जाती थीं, और तो और इंसान छोड़िए अगर मवेशी भी जंगल मे चरने जाती तो वो भी बाद मे मृत अवस्था मे ही मिलती।
इन सब घटनाओं ने गांव को बदनाम कर दिया। आस-पास के गांवों के लोग वहां आना बंद कर दिए। धीरे-धीरे लोग गांव को छोड़ने लगे। कुछ लोग दूसरे शहर चले गए, कुछ ने अपनी जमीन बेच दी और कहीं और बस गए।
एक शोधकर्ता की खोज
इसी तरह कुछ साल बीतने के बाद एक प्रसिद्ध परामनोवैज्ञानिक “डॉ. हर्षित तिवारी” ने इस जगह के बारे में सुना और वहां शोध करने पहुंचे। उन्होंने कई रातें उस गांव और जंगल में बिताईं। उनके अनुसार, यह जगह प्रबल नकारात्मक ऊर्जा से भरी हुई है। उनके द्वारा लगाए गए कैमरों में एक महिला की परछाईं रिकॉर्ड हुई जो अचानक गायब हो जाती है।
डॉ. हर्षित ने बताया कि उस जंगल में एक आत्मा है जो काफी खतरनाक है, वो अपना बदला ले रही है, और जब तक उसे न्याय नहीं मिलेगा, तब तक वह आत्मा मुक्त नहीं होगी।
आत्मा की शांति के लिए प्रयास
गांव में बचे कुछ बुजुर्गों ने तय किया कि वे गौरा बाई की आत्मा की शांति के लिए एक हवन और पूजा करेंगे। एक पुराने साधु को बुलाया गया, जिन्होंने जंगल के उस स्थान पर पूजा की जहां गौरा बाई को दफनाया गया था। पूजा के दौरान भयंकर आंधी आई, पेड़ हिलने लगे और ऐसा लगा जैसे खुद जंगल कुछ कह रहा हो।
पूजा के बाद कुछ समय तक गांव में शांति रही। लोगों को लगा शायद अब आत्मा को मुक्ति मिल गई है, लेकिन कुछ ही महीनों बाद फिर से घटनाएं शुरू हो गईं।
वर्तमान स्थिति
आज वह गांव लगभग पूरी तरह वीरान है। केवल कुछ ही परिवार बचे हैं, जो मजबूरी में वहां रह रहे हैं। जंगल अब और भी अधिक डरावना हो चुका है। वहां सरकारी तौर पर प्रवेश वर्जित कर दिया गया है। लेकिन कभी-कभी जंगल के किनारे से गुजरने वाले ट्रक ड्राइवर और चरवाहे आज भी वहां से किसी के चलने की आवाज़ें सुनते हैं।
एक बात तो तय है – उस जंगल की आत्मा अभी भी अपने बदले की तलाश में है।
निष्कर्ष
यह कहानी केवल एक महिला की नहीं, बल्कि उस सामाजिक पाप की कहानी है जो अंधविश्वास और डर के कारण होता है। गौरा बाई ने शायद कोई बुरा काम नहीं किया था, लेकिन समाज ने उसे “डायन” कहकर मार डाला। और तब से यह जंगल केवल पेड़ों और जानवरों का नहीं रहा, बल्कि एक ऐसी आत्मा का घर बन गया है जो न्याय के लिए आज भी चीख रही है। अगर यह कहानी आपको सोचने पर मजबूर करती है, तो अगली बार जब आप किसी पर अंधविश्वास के आधार पर आरोप लगाने जाएं, तो एक बार जरूर सोचें – कहीं आप भी एक और “भुतिया जंगल” की शुरुआत तो नहीं कर रहे?
अस्वीकरण (Disclaimer):
यह लेख एक काल्पनिक कहानी पर आधारित है। इसमें वर्णित घटनाएं, पात्र, स्थान और स्थितियाँ पूरी तरह लेखक की कल्पना हैं। इनका किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति, वास्तविक स्थान या घटना से कोई संबंध नहीं है। यदि कोई समानता संयोगवश प्रतीत होती है, तो वह मात्र एक संयोग है। इस लेख का उद्देश्य केवल पाठकों का मनोरंजन करना है।