बेगुनकोडोर रेलवे स्टेशन :- हमारे देश भारत मे यूं तो कई बड़े बड़े रेलवे स्टेशन है, जहां से लोग अपनी मांजलि के लिए सफर करते हैं| अगर आपको मन नहीं लगता है तो एक बार रेलवे स्टेशन चले जाइए वहाँ की भीड़ और वहाँ बिक रहे तरह तरह के नास्ते, झाल मुड़ी जिसे खा कर मन हारा हो जाता है| और ऐसे बहुत से अपना रात भी इन्हीं स्टेशनों पर बिताते हैं| मैं यह इसलिए कह रहा हूँ कि किसी भी आदमी को अकेलापन या डर रेलवे स्टेशन पर नहीं लगता लेकिन भारत मेन एक ऐसा भी रेलवे स्टेशन था जो अपने खुलने के मात्र सात साल बाद ही एक आत्मा यानि भूत के कारण बंद हो गया| उस रेलवे स्टेशन का नाम है बेगुनकोडोर रेलवे स्टेशन….
प्रस्तावना
भारत जैसे विशाल और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध देश में हर कोना किसी न किसी रहस्य को समेटे हुए है। जहां एक ओर रेलवे स्टेशनों की चहल-पहल, चाय की दुकानें और यात्रियों की भीड़ लोगों को जीवन की एक अलग ऊर्जा देती हैं, वहीं कुछ स्टेशन ऐसे भी हैं जो डर और रहस्य की कहानियों से घिरे हुए हैं। ऐसा ही एक नाम है — बेगुनकोडोर रेलवे स्टेशन, जिसे भारत का सबसे भूतिया रेलवे स्टेशन कहा जाता है।
स्टेशन का इतिहास: एक उम्मीद का आरंभ
बेगुनकोडोर रेलवे स्टेशन की स्थापना 1960 में पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले में हुई थी। यह छोटा-सा स्टेशन भारतीय रेलवे की दक्षिण-पूर्व रेलवे ज़ोन के तहत आता है। यह स्टेशन खासतौर पर आदिवासी बहुल इलाके में रहने वाले लोगों की सुविधा के लिए बनाया गया था। स्टेशन का उद्घाटन तत्कालीन राजा और स्थानीय सांसद की देखरेख में हुआ था, और इसकी स्थापना एक गौरव की बात मानी गई थी।
स्थानीय लोगों को यह उम्मीद थी कि यह स्टेशन न सिर्फ उन्हें परिवहन की सुविधा देगा, बल्कि विकास की नई राहें भी खोलेगा। लेकिन यह खुशी ज़्यादा समय तक टिक नहीं सकी।
1967: जब डर ने ले ली जगह
स्टेशन के उद्घाटन के सात साल बाद, 1967 में पहली बार ऐसी अफवाहें फैलने लगीं कि स्टेशन पर कुछ असामान्य घटनाएं हो रही हैं। सबसे पहली घटना उस समय की स्टेशन मास्टर की रहस्यमयी मौत से जुड़ी थी। कहा जाता है कि स्टेशन मास्टर और उनका पूरा परिवार स्टेशन परिसर में मृत पाए गए, और उनकी मौत का कारण कभी स्पष्ट नहीं हो सका। इसी घटना के बाद से लोगों ने यह मान लिया कि स्टेशन पर किसी आत्मा का साया है। और उस स्टेशन से दूरी बनाने लगे|
यात्रियों की आंखों देखी: वह महिला जो दिखती है
स्थानीय लोग और स्टेशन के कर्मचारी अक्सर यह दावा करते थे कि उन्होंने एक सफेद साड़ी पहने महिला को स्टेशन के प्लेटफॉर्म पर देखा है, जो रात के समय अचानक किसी जगह खड़ी दिखती है और फिर गायब हो जाती है। कई लोगों ने यह भी बताया कि जब ट्रेन स्टेशन पर रुकती थी, तो वह महिला प्लेटफॉर्म पर टहलती हुई दिखती थी, लेकिन जैसे ही कोई उसे पास जाने की कोशिश करता, वह गायब हो जाती।
ट्रेन चालकों की कहानी
केवल आम लोग ही नहीं, बल्कि कई ट्रेन चालकों ने भी यह दावा किया कि जब उनकी ट्रेन रात को बेगुनकोडोर स्टेशन से गुज़रती थी, तो उन्हें सामने कोई महिला खड़ी दिखती थी। कई बार तो डर के कारण उन्होंने ट्रेन की स्पीड धीमी कर दी थी। कुछ मामलों में अचानक ब्रेक लगने की वजह से यात्री घायल भी हुए।
स्टेशन को बंद करने का फैसला
इन घटनाओं और अफवाहों के बाद स्टेशन पर यात्रियों की संख्या दिन-ब-दिन घटती चली गई। कोई भी व्यक्ति वहां रात में रुकने को तैयार नहीं था। डर का ऐसा माहौल बन गया कि रेलवे प्रशासन ने 1967 में इस स्टेशन को आधिकारिक रूप से बंद कर दिया। एक फंक्शनल स्टेशन जो जनता की सेवा के लिए बना था, उसे भूत की वजह से बंद कर दिया गया — यह भारतीय रेलवे के इतिहास में शायद एकमात्र ऐसा मामला है।
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42 साल तक वीरान रहा स्टेशन
1967 से लेकर 2009 तक, यानी पूरे 42 साल तक यह स्टेशन पूरी तरह से वीरान पड़ा रहा। न कोई ट्रेन वहां रुकती थी और न ही कोई कर्मचारी वहां तैनात रहता था। स्टेशन की इमारत जर्जर होती चली गई और वहां घास-फूस उग आए। यह स्थान अब एक ‘भूतिया स्टेशन’ के रूप में जाना जाने लगा।
2009: जब स्टेशन को फिर से शुरू किया गया
वर्ष 2009 में स्थानीय आदिवासी समुदाय और सामाजिक कार्यकर्ताओं की मांग पर भारतीय रेलवे ने स्टेशन को दोबारा चालू करने का निर्णय लिया। पश्चिम बंगाल की तत्कालीन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व में यह प्रयास किया गया। रेलवे ने स्टेशन की साफ-सफाई करवाई, इमारत की मरम्मत की और ट्रेनें फिर से वहां रुकने लगीं।
लेकिन दिलचस्प बात यह रही कि स्टेशन तो दोबारा खुल गया, लेकिन भूतिया कहानियाँ अब भी बंद नहीं हुईं। लोग आज भी दावा करते हैं कि वहां रात को अजीब-अजीब आवाजें आती हैं और सफेद साड़ी में एक महिला को भटकते हुए देखा जा सकता है।
पर्यटन स्थल के रूप में लोकप्रियता
आज बेगुनकोडोर रेलवे स्टेशन केवल एक स्टेशन नहीं, बल्कि एक पर्यटन स्थल बन चुका है। जो लोग रहस्यमयी और डरावनी जगहों पर घूमने का शौक रखते हैं, वे यहां ज़रूर आते हैं। पश्चिम बंगाल सरकार और स्थानीय प्रशासन इस स्थान को ‘हॉरर टूरिज्म’ के रूप में विकसित करने की दिशा में भी सोच रहे हैं।
वैज्ञानिक नजरिया: क्या यह सब भ्रम है?
हालांकि कई लोगों का मानना है कि यह सब केवल अफवाहें और मनोवैज्ञानिक भ्रम का परिणाम है। वैज्ञानिक और समाजशास्त्री मानते हैं कि जब किसी स्थान पर एक बार डर का माहौल बन जाता है, तो लोग साधारण घटनाओं को भी डरावना मानने लगते हैं। किसी आवाज को आत्मा की आवाज समझना, किसी छाया को भूत मान लेना — यह सब मानव मस्तिष्क की प्रवृत्ति है।
रेलवे प्रशासन ने भी बार-बार कहा है कि स्टेशन पर कोई असामान्य गतिविधि नहीं है, और यात्रियों को डरने की ज़रूरत नहीं।
स्थानीय लोगों की धारणा
आज भी बेगुनकोडोर गांव के कई लोग स्टेशन पर रात में जाने से कतराते हैं। उनका मानना है कि स्टेशन पर आत्मा की उपस्थिति आज भी है। कई बुज़ुर्ग लोगों ने बताया है कि उन्होंने खुद अजीब घटनाएं देखी हैं — जैसे बिना हवा के दरवाज़े का अपने आप खुलना, ट्रेन की आवाज़ बिना ट्रेन के, और रात में किसी के रोने की आवाजें।
मीडिया में चर्चा
बेगुनकोडोर रेलवे स्टेशन कई बार राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में चर्चा का विषय रहा है। डिस्कवरी चैनल, NDTV और कई अन्य मीडिया प्लेटफॉर्म्स ने इस स्टेशन पर विशेष रिपोर्ट बनाई हैं। यूट्यूब और सोशल मीडिया पर भी इस स्टेशन को लेकर हजारों वीडियो और ब्लॉग्स मौजूद हैं जो इसकी रहस्यमयी छवि को और मज़बूत करते हैं।
निष्कर्ष: डर और सच्चाई के बीच की रेखा
बेगुनकोडोर रेलवे स्टेशन आज भी एक रहस्य बना हुआ है। क्या वास्तव में वहां आत्मा का साया है, या यह केवल अफवाहों का नतीजा है — इसका कोई ठोस प्रमाण अब तक नहीं मिला है। लेकिन यह सच है कि इस स्टेशन की कहानी लोगों के मन में इतना गहरा बैठ चुकी है कि वह स्थान अब केवल एक परिवहन केंद्र नहीं, बल्कि एक भूतिया अनुभव का प्रतीक बन चुका है।
अगर आप रोमांच और रहस्य में विश्वास करते हैं, तो बेगुनकोडोर रेलवे स्टेशन की यात्रा आपके लिए एक अविस्मरणीय अनुभव हो सकती है। और अगर नहीं भी करते, तो भी यह स्थान यह सिखाता है कि कहानियाँ, चाहे सच्ची हों या झूठी, लेकिन फिर भी वो लोगों के दिलों पर कितना गहरा असर छोड़ सकती हैं।