टिहरी डैम के नीचे डूबी आत्माएँ (उत्तराखंड) :- भारत मे कई विशाल डैम है, जिससे पानी को संचित किया जाता है। ताकि उस पानी का उचित उपयोग किया जा सके, आप लोग जानते ही होने की पानी से ही विजली उत्पन्न किया जाता है, और कृषि के लिए तो पानी हैं जरूरी, इसीलिए कहा भी जाता है कि जल ही जीवन है। लेकिन आपको यह भी पता होना चाहिए की डैम यूं वो काफी मजबूत बनाया जाता है, लेकिन फिर भी किसी कर्ण वश डैम अगर टूट जाए तो आस पास उससे घोर प्रलय आ सकता है। आज मैं एक इसी प्रकार की घटना के बारे मे आपको जानकारी दूंगा, जो काफी विनाशकरी था। और मैं जिस डैम के बारे में बात कर रहा हूँ उसका नाम टिहरी डैम…
प्रस्तावना
भारत के उत्तराखंड राज्य में स्थित टिहरी डैम केवल जल संरक्षण और विद्युत उत्पादन के लिए ही प्रसिद्ध नहीं है, बल्कि इसके पीछे छिपी त्रासद और रहस्यमयी कहानियाँ आज भी लोगों के रोंगटे खड़े कर देती हैं। कहते हैं कि इस डैम के नीचे आज भी एक बसी हुई दुनिया दबी हुई है — घर, मंदिर, सड़कें और सबसे अहम, वहाँ रहने वाले लोगों की आत्माएँ।
इस लेख में हम टिहरी डैम के निर्माण की प्रक्रिया, उससे जुड़े सामाजिक और मानव पीड़ाओं, और विशेष रूप से उन डरावनी घटनाओं की चर्चा करेंगे, जिनके कारण टिहरी डैम को भुतिया कहा जाता हैं।
टिहरी डैम: भारत का गौरव:
टिहरी डैम भारत का सबसे ऊँचा और एशिया का दूसरा सबसे ऊँचा बाँध है। भागीरथी और भीलांगना नदियों के संगम पर स्थित यह डैम लगभग 260.5 मीटर ऊँचा है और इससे लगभग 2400 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है। यह दिल्ली, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे बड़े राज्यों में जल और बिजली दोनों की आपूर्ति करता है।
लेकिन इस बाँध के निर्माण की कीमत बहुत भारी थी — एक पूरा शहर और उसके साथ जुड़ी अनगिनत कहानियाँ डूब गईं।
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टिहरी शहर का डूबना: एक जीवंत शहर का अंत
पुराना टिहरी शहर, जो पहले भागीरथी और भीलांगना नदियों के संगम पर बसा था, अब पानी के नीचे समा चुका है। हजारों साल पुराना यह नगर अपनी संस्कृति, मंदिरों, घाटों और धार्मिक मान्यताओं के लिए प्रसिद्ध था।
डूबे मंदिर और संस्कृतियाँ
इस क्षेत्र में अनेक प्राचीन मंदिर जैसे रघुनाथ मंदिर, चंद्रबदनी मंदिर और कई पुराने घाट थे। जब डैम का जल स्तर बढ़ा, तो ये मंदिर और घाट धीरे-धीरे जलमग्न हो गए। लोगों ने इन्हें बचाने के लिए प्रदर्शन किए, उपवास किए, लेकिन सरकार और विकास की परियोजनाओं के आगे सब व्यर्थ रहा।
लोगों का विस्थापन: केवल घर नहीं, यादें भी डूबीं
टिहरी डैम के निर्माण के दौरान लगभग 1 लाख लोगों को अपने घर छोड़ने पड़े। ये लोग पीढ़ियों से टिहरी शहर में रह रहे थे। किसी ने अपनी पुश्तैनी हवेली खोई, किसी ने मंदिर, तो किसी ने अपने पुरखों की समाधियाँ।
आक्रोश और आंदोलन
विस्थापन के विरोध में लंबे समय तक आंदोलन हुए। प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा ने इस परियोजना का तीव्र विरोध किया और वर्षों तक अनशन पर बैठे। लेकिन सरकार ने इसे “राष्ट्रीय आवश्यकता” बताकर निर्माण को रोकने से इंकार कर दिया।
क्या टिहरी डैम भूतिया है? स्थानीय लोगों के डरावने अनुभव
अब आते हैं उस पहलू पर, जो इस लेख का मूल विषय है — टिहरी डैम के नीचे डूबी आत्माएँ। वर्षों से स्थानीय लोग यह दावा करते रहे हैं कि डैम के आसपास अजीब घटनाएँ होती हैं। इनमें कुछ घटनाएँ इतनी डरावनी हैं कि कोई भी सामान्य व्यक्ति सोचने पर मजबूर हो जाए।
अचानक सुनाई देने वाली आवाज़ें
रात के समय स्थानीय लोगों और सुरक्षा गार्ड्स को अक्सर डैम के पास से घंटियों की आवाजें आती हैं। कहते हैं कि यह आवाज़ें उन डूबे हुए मंदिरों से आती हैं, जो अब जल के नीचे हैं। जबकि आसपास कोई मंदिर या इंसान नहीं होता।
जल की सतह पर दिखने वाली आकृतियाँ
कुछ नाविकों और मछुआरों ने दावा किया है कि उन्हें पानी की सतह पर तैरती हुई परछाईं दिखती है, जो कुछ दूर जाकर गायब हो जाती है।
रात को गूंजती चिल्लाहटें
रात के समय कभी-कभी ऐसा लगता है जैसे कोई मदद के लिए पुकार रहा हो। “बचाओ! बचाओ!” जैसी आवाजें कई बार सुनी जा चुकी हैं। लेकिन जब खोजबीन की जाती है, तो वहाँ कोई नहीं होता।
डूबे आत्माओं की मान्यता: मिथक या सच्चाई?
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह सब मनोवैज्ञानिक प्रभाव, पुराने स्मृतियों और जल की गूंज हो सकती है। लेकिन जब दर्जनों लोग अलग-अलग समय पर एक जैसी घटनाओं का अनुभव करें, तो सवाल उठना लाजमी है।
क्या आत्माएँ वाकई होती हैं?
टिहरी जैसे स्थलों पर जहाँ लोगों की मृत्यु अचानक और पीड़ा के साथ हुई हो, वहाँ नकारात्मक ऊर्जा या आत्माओं का वास मानना भारतीय संस्कृति में सामान्य बात है। भूत-प्रेत को मानने वाले लोगों के अनुसार, टिहरी डैम एक “बाँधित श्मशान” बन चुका है।
प्रशासन की चुप्पी और मीडिया की दूरी
ऐसी घटनाओं पर स्थानीय प्रशासन चुप्पी साधे रहता है। उन्हें डर है कि यदि इस प्रकार की कहानियाँ प्रचारित हुईं तो पर्यटन और डैम के महत्व को नुकसान हो सकता है। मीडिया ने भी इस विषय को उतनी गंभीरता से नहीं उठाया, जितना उठाना चाहिए था।
एक परिवार की कहानी: जो डैम के नीचे रह गया
श्री लक्ष्मण सिंह की उम्र अब 70 वर्ष है। वे पुराने टिहरी के निवासी थे। जब विस्थापन हुआ, उनका परिवार अलग-अलग बिखर गया। उनकी माँ विस्थापन के दौरान बीमार थीं और अंतिम क्षणों में उनका वहीं उनका देहांत हो गया। वे कहते हैं:
“मैं आज भी रात को माँ की आवाज़ें सुनता हूँ… वो कहती हैं, ‘मैं यहीं हूँ, पानी के नीचे… अपने घर में।’”
ऐसी सच्ची कहानियाँ इस भयावहता को और भी जीवंत कर देती हैं।
टिहरी डैम: आधुनिकता और आध्यात्मिक पीड़ा का संगम
टिहरी डैम एक ओर भारत की जल-विद्युत शक्ति का उदाहरण है, तो दूसरी ओर यह उन हजारों लोगों की अधूरी कहानियों और पीड़ाओं की कब्रगाह भी है। यहाँ विकास और विनाश एक ही स्थान पर उपस्थित हैं।
निष्कर्ष: क्या आप कभी टिहरी डैम गए हैं?
यदि आप कभी टिहरी डैम घूमने जाएँ, तो उस शांत जल के नीचे की अनसुनी चीखों को महसूस करने की कोशिश करें। शायद आपको वहाँ कोई पुकारता हुआ मिले… कोई जो अब भी अपने घर को ढूंढ रहा है… अपने अस्तित्व को तलाश रहा है।
यह लेख हमें याद दिलाता है कि विकास की राह में जो छूट जाता है, वह केवल भौतिक वस्तुएँ नहीं होतीं, बल्कि आत्माएँ, भावनाएँ और संस्कृतियाँ भी होती हैं।
अस्वीकरण:
इस लेख में दी गई जानकारी विभिन्न स्रोतों, स्थानीय कथाओं और लोगों के अनुभवों पर आधारित है। bhutkikahani.com इन भुतिया घटनाओं या दावों की सत्यता की पुष्टि नहीं करता है। इस लेख का उद्देश्य केवल मनोरंजन और सामान्य जानकारी प्रदान करना है।