शनिवार वाड़ा किला – पुणे का वो किला जहाँ आज भी ‘बचाओ’ की चीखें सुनाई देती हैं

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शनिवार वाड़ा किला (पुणे, महाराष्ट्र) :- हमारा देश भारत जो अपने प्राचीन संस्कृति और धार्मिक मामलों मे आज भी पूरे विश्व में आगे है भारत मे एक से बढ़ कर एक योद्धा रहे हैं, जिसका बखान आज भी इतिहास के पन्नो मे मिलता है| उसी प्रकार भारत के उन महान योद्धाओं और राजाओं द्वारा बनवाया गया भव्य और अद्वितीय किला और राजमहल का वर्णन जिसका साक्ष आज भी देखा जा सकता है, इतिहास मे है| और आज मैं जिस किले के बारे मे बताने जा रहा हूँ उसके बारे में आप जान कर डरने वाले हैं| जिसका नाम है शनि वारवाड़ा किला…

प्रस्तावना

भारतवर्ष में इतिहास के गर्भ में कई ऐसे रहस्य छिपे हुए हैं, जिन्हें जानकर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। भारत की धरती न केवल वीर योद्धाओं की भूमि रही है, बल्कि यह धरती अपने भीतर कुछ ऐसी घटनाओं को भी समेटे हुए है, जो तर्क से परे हैं। महाराष्ट्र राज्य के पुणे शहर में स्थित एक ऐसा ही ऐतिहासिक और रहस्यमयी किला है – शनिवार वाड़ा किला। यह किला आज भी न केवल पेशवाओं की गौरवगाथा सुनाता है, बल्कि यहाँ से जुड़ी एक डरावनी और दिल दहला देने वाली कहानी भी लोगों को हैरान करती है।

शनिवार वाड़ा का इतिहास

शनिवार वाड़ा का निर्माण 1732 में पेशवा बाजीराव प्रथम द्वारा करवाया गया था। यह किला मराठा साम्राज्य की राजधानी के रूप में उपयोग होता था और पेशवा परिवार की शान हुआ करता था। शुरुआत में यह इमारत केवल पत्थरों से बनाई जानी थी, लेकिन बाद में मुगलों के विरोध के चलते इसे मुख्यतः लकड़ी से बनवाया गया।

इस किले का नाम शनिवार वाड़ा इसलिए पड़ा क्योंकि इसका निर्माण शनिवार के दिन आरंभ हुआ था। किला पाँच मंज़िल ऊँचा था और इसमें भव्य महल, फव्वारे, बाग़-बगिचे और कई गुप्त सुरंगें थीं।

पेशवा नरेशों का वैभव

शनिवार वाड़ा किला पेशवा नरेशों की राजनीतिक और सामाजिक गतिविधियों का केंद्र था। बाजीराव प्रथम, नाना साहेब पेशवा, और नारायणराव पेशवा जैसे कई प्रमुख मराठा शासक यहीं निवास करते थे। इस किले में युद्ध की रणनीतियाँ बनाई जाती थीं, राजकीय फैसले लिए जाते थे, और यहाँ से पूरे मराठा साम्राज्य का संचालन होता था।

नारायणराव पेशवा की दर्दनाक हत्या

इस किले का सबसे काला अध्याय जुड़ा है 18 वर्षीय नारायणराव पेशवा की हत्या से। 1773 में, पेशवा नारायणराव की हत्या उनके ही चाचा रघुनाथराव और चाची आनंदीबाई की साजिश का परिणाम मानी जाती है। इतिहासकार बताते हैं कि रघुनाथराव ने सैनिकों को आदेश दिया था – धरा दो नारायणराव को” (अर्थात पकड़ लो), लेकिन उनकी पत्नी आनंदीबाई ने इस आदेश को बदल कर “मार दो नारायणराव को” करवा दिया।

इसके बाद किले के अंदर नारायणराव को बड़ी बेरहमी से मार दिया गया। कहा जाता है कि जब सैनिक उनकी ओर बढ़े, तो वे महल के गलियारों में भागते हुए मदद के लिए चीखते रहे – काका! मला वाचवा! (काका! मुझे बचाओ!)। उनकी चीखें आज भी शनिवार वाड़ा की दीवारों में गूंजती हैं।

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शनिवार वाड़ा में लगने वाली आग

1828 में शनिवार वाड़ा में एक भीषण आग लग गई थी, जिसमें किले का बड़ा हिस्सा नष्ट हो गया। इस आग के कारण की जानकारी आज तक नहीं मिल पाई है। यह आग लगातार सात दिनों तक जलती रही और किले के लकड़ी से बने भाग पूरी तरह से जलकर राख हो गए।

कुछ लोगों का मानना है कि यह आग भी उस किले में हुई हत्याओं और रूहानी गतिविधियों का ही परिणाम थी।

आज का शनिवार वाड़ा

आज शनिवार वाड़ा एक प्रमुख पर्यटन स्थल है और महाराष्ट्र सरकार द्वारा संरक्षित एक ऐतिहासिक धरोहर के रूप में देखा जाता है। यहाँ हजारों पर्यटक हर साल आते हैं, खासकर वो लोग जो इतिहास के साथ-साथ अलौकिक घटनाओं में भी विश्वास रखते हैं।

दिन के समय यह स्थान बेहद खूबसूरत और ऐतिहासिक लगता है, लेकिन जैसे ही सूरज ढलता है, इस किले के माहौल में एक रहस्यमयी सन्नाटा पसर जाता है।

शनिवार वाड़ा की भूतिया कहानियाँ

  1. मला वाचवा!की चीखें:

    हर पूर्णिमा की रात, और खासकर शनिवार को, स्थानीय लोग और कई पर्यटक ये दावा करते हैं कि उन्होंने किले के अंदर से एक बच्चे की चीखें सुनीं, जो मराठी में “मला वाचवा!” कहते हैं।

  2. रात में प्रवेश वर्जित:

    सरकारी आदेश के अनुसार, शाम 6:30 बजे के बाद किसी को भी शनिवार वाड़ा में प्रवेश की अनुमति नहीं होती। क्योंकि रात के समय यहाँ असामान्य गतिविधियों की शिकायतें बढ़ जाती हैं।

  3. भटकती आत्माएँ:

    कई लोगों ने दावा किया है कि उन्होंने किले में एक सफेद साड़ी पहनी महिला को रात के अंधेरे में चलते देखा है। कुछ का कहना है कि ये आत्माएँ नारायणराव के हत्यारों की भी हो सकती हैं, जो आज भी प्रायश्चित के रूप में वहाँ भटकती हैं।

  4. रहस्यमयी रोशनी और साया:

    रात के समय यहाँ रहस्यमयी रोशनी और परछाइयाँ देखी गई हैं, जिनका कोई वैज्ञानिक या तार्किक प्रमाण नहीं मिला।

शनिवार वाड़ा से जुड़े रोचक तथ्य

  • यह किला लगभग 625 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ था।
  • यहाँ के मुख्य द्वार को दिल्ली दरवाजा कहा जाता है।
  • इस किले में पाँच प्रमुख द्वार हैं – दिल्ली दरवाजा, मस्तानी दरवाजा, खिड़की दरवाजा, गणेश दरवाजा और नारायण दरवाजा।
  • नारायण दरवाजा को ही वो स्थान माना जाता है जहाँ नारायणराव पेशवा की हत्या की गई थी।

क्या शनिवार वाड़ा सच में भूतिया है?

इस सवाल का कोई वैज्ञानिक उत्तर नहीं है, लेकिन स्थानीय लोगों की मान्यताएँ और पर्यटकों के अनुभव इसे भारत के सबसे डरावने स्थानों में से एक बना देते हैं।

कई पैरा-साइकोलॉजिस्ट्स और भूत-प्रेत पर रिसर्च करने वाले समूहों ने यहाँ अध्ययन किया, और वे भी यहाँ की ऊर्जा को ‘असामान्य’ मानते हैं।

निष्कर्ष (नतीजा)

शनिवार वाड़ा किला केवल एक ऐतिहासिक धरोहर नहीं है, बल्कि यह भारतीय इतिहास के उन पन्नों को समेटे हुए है जिनमें सत्ता की लालसा, विश्वासघात और निर्दोष की चीखें शामिल हैं। यह किला उन आत्माओं का प्रतीक बन चुका है जो शायद आज भी न्याय की आस में भटक रही हैं।

अगर आप इतिहास के प्रेमी हैं या फिर किसी भूतिया स्थान की सैर करना चाहते हैं, तो शनिवार वाड़ा आपके लिए एक अद्भुत अनुभव हो सकता है – लेकिन याद रहे, सिर्फ दिन के समय!

क्या आप शनिवार वाड़ा गए हैं?

अगर हाँ, तो अपने अनुभव हमें कमेंट में ज़रूर बताएं। और यदि आप भविष्य में वहाँ जाने की सोच रहे हैं, तो इस लेख को बुकमार्क कर लें ताकि आपको उसकी रहस्यमयी दुनिया में उतरने से पहले पूरा ज्ञान मिल सके।

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